Amritvele Da Hukamnama Sachkhand Sri Darbar Sahib, Amritsar, Ang 566, 06-03-2022
ਵਡਹੰਸੁ ਮਹਲਾ ੧ ॥ ਕਰਹੁ ਦਇਆ ਤੇਰਾ ਨਾਮੁ ਵਖਾਣਾ ॥ ਸਭ ਉਪਾਈਐ ਆਪਿ ਆਪੇ ਸਰਬ ਸਮਾਣਾ ॥ ਸਰਬੇ ਸਮਾਣਾ ਆਪਿ ਤੂਹੈ ਉਪਾਇ ਧੰਧੈ ਲਾਈਆ ॥ ਇਕਿ ਤੁਝ ਹੀ ਕੀਏ ਰਾਜੇ ਇਕਨਾ ਭਿਖ ਭਵਾਈਆ ॥ ਲੋਭੁ ਮੋਹੁ ਤੁਝੁ ਕੀਆ ਮੀਠਾ ਏਤੁ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਣਾ ॥ ਸਦਾ ਦਇਆ ਕਰਹੁ ਅਪਣੀ ਤਾਮਿ ਨਾਮੁ ਵਖਾਣਾ ॥੧॥ ਨਾਮੁ ਤੇਰਾ ਹੈ ਸਾਚਾ ਸਦਾ ਮੈ ਮਨਿ ਭਾਣਾ ॥ ਦੂਖੁ ਗਇਆ ਸੁਖੁ ਆਇ ਸਮਾਣਾ ॥ ਗਾਵਨਿ ਸੁਰਿ ਨਰ ਸੁਘੜ ਸੁਜਾਣਾ ॥ ਸੁਰਿ ਨਰ ਸੁਘੜ ਸੁਜਾਣ ਗਾਵਹਿ ਜੋ ਤੇਰੈ ਮਨਿ ਭਾਵਹੇ ॥ ਮਾਇਆ ਮੋਹੇ ਚੇਤਹਿ ਨਾਹੀ ਅਹਿਲਾ ਜਨਮੁ ਗਵਾਵਹੇ ॥ ਇਕਿ ਮੂੜ ਮੁਗਧ ਨ ਚੇਤਹਿ ਮੂਲੇ ਜੋ ਆਇਆ ਤਿਸੁ ਜਾਣਾ ॥ ਨਾਮੁ ਤੇਰਾ ਸਦਾ ਸਾਚਾ ਸੋਇ ਮੈ ਮਨਿ ਭਾਣਾ ॥੨॥ ਤੇਰਾ ਵਖਤੁ ਸੁਹਾਵਾ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਤੇਰੀ ਬਾਣੀ ॥ ਸੇਵਕ ਸੇਵਹਿ ਭਾਉ ਕਰਿ ਲਾਗਾ ਸਾਉ ਪਰਾਣੀ ॥ ਸਾਉ ਪ੍ਰਾਣੀ ਤਿਨਾ ਲਾਗਾ ਜਿਨੀ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪਾਇਆ ॥ ਨਾਮਿ ਤੇਰੈ ਜੋਇ ਰਾਤੇ ਨਿਤ ਚੜਹਿ ਸਵਾਇਆ ॥ ਇਕੁ ਕਰਮੁ ਧਰਮੁ ਨ ਹੋਇ ਸੰਜਮੁ ਜਾਮਿ ਨ ਏਕੁ ਪਛਾਣੀ ॥ ਵਖਤੁ ਸੁਹਾਵਾ ਸਦਾ ਤੇਰਾ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਤੇਰੀ ਬਾਣੀ ॥੩॥ ਹਉ ਬਲਿਹਾਰੀ ਸਾਚੇ ਨਾਵੈ ॥ ਰਾਜੁ ਤੇਰਾ ਕਬਹੁ ਨ ਜਾਵੈ ॥ ਰਾਜੋ ਤ ਤੇਰਾ ਸਦਾ ਨਿਹਚਲੁ ਏਹੁ ਕਬਹੁ ਨ ਜਾਵਏ ॥ ਚਾਕਰੁ ਤ ਤੇਰਾ ਸੋਇ ਹੋਵੈ ਜੋਇ ਸਹਜਿ ਸਮਾਵਏ ॥ ਦੁਸਮਨੁ ਤ ਦੂਖੁ ਨ ਲਗੈ ਮੂਲੇ ਪਾਪੁ ਨੇੜਿ ਨ ਆਵਏ ॥ ਹਉ ਬਲਿਹਾਰੀ ਸਦਾ ਹੋਵਾ ਏਕ ਤੇਰੇ ਨਾਵਏ ॥੪॥ ਜੁਗਹ ਜੁਗੰਤਰਿ ਭਗਤ ਤੁਮਾਰੇ ॥ ਕੀਰਤਿ ਕਰਹਿ ਸੁਆਮੀ ਤੇਰੈ ਦੁਆਰੇ ॥ ਜਪਹਿ ਤ ਸਾਚਾ ਏਕੁ ਮੁਰਾਰੇ ॥ ਸਾਚਾ ਮੁਰਾਰੇ ਤਾਮਿ ਜਾਪਹਿ ਜਾਮਿ ਮੰਨਿ ਵਸਾਵਹੇ ॥ ਭਰਮੋ ਭੁਲਾਵਾ ਤੁਝਹਿ ਕੀਆ ਜਾਮਿ ਏਹੁ ਚੁਕਾਵਹੇ ॥ ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਕਰਹੁ ਕਿਰਪਾ ਲੇਹੁ ਜਮਹੁ ਉਬਾਰੇ ॥ ਜੁਗਹ ਜੁਗੰਤਰਿ ਭਗਤ ਤੁਮਾਰੇ ॥੫॥ ਵਡੇ ਮੇਰੇ ਸਾਹਿਬਾ ਅਲਖ ਅਪਾਰਾ ॥ ਕਿਉ ਕਰਿ ਕਰਉ ਬੇਨੰਤੀ ਹਉ ਆਖਿ ਨ ਜਾਣਾ ॥ ਨਦਰਿ ਕਰਹਿ ਤਾ ਸਾਚੁ ਪਛਾਣਾ ॥ ਸਾਚੋ ਪਛਾਣਾ ਤਾਮਿ ਤੇਰਾ ਜਾਮਿ ਆਪਿ ਬੁਝਾਵਹੇ ॥ ਦੂਖ ਭੂਖ ਸੰਸਾਰਿ ਕੀਏ ਸਹਸਾ ਏਹੁ ਚੁਕਾਵਹੇ ॥ ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕੁ ਜਾਇ ਸਹਸਾ ਬੁਝੈ ਗੁਰ ਬੀਚਾਰਾ ॥ ਵਡਾ ਸਾਹਿਬੁ ਹੈ ਆਪਿ ਅਲਖ ਅਪਾਰਾ ॥੬॥ ਤੇਰੇ ਬੰਕੇ ਲੋਇਣ ਦੰਤ ਰੀਸਾਲਾ ॥ ਸੋਹਣੇ ਨਕ ਜਿਨ ਲੰਮੜੇ ਵਾਲਾ ॥ ਕੰਚਨ ਕਾਇਆ ਸੁਇਨੇ ਕੀ ਢਾਲਾ ॥ ਸੋਵੰਨ ਢਾਲਾ ਕ੍ਰਿਸਨ ਮਾਲਾ ਜਪਹੁ ਤੁਸੀ ਸਹੇਲੀਹੋ ॥ ਜਮ ਦੁਆਰਿ ਨ ਹੋਹੁ ਖੜੀਆ ਸਿਖ ਸੁਣਹੁ ਮਹੇਲੀਹੋ ॥ ਹੰਸ ਹੰਸਾ ਬਗ ਬਗਾ ਲਹੈ ਮਨ ਕੀ ਜਾਲਾ ॥ ਬੰਕੇ ਲੋਇਣ ਦੰਤ ਰੀਸਾਲਾ ॥੭॥ ਤੇਰੀ ਚਾਲ ਸੁਹਾਵੀ ਮਧੁਰਾੜੀ ਬਾਣੀ ॥ ਕੁਹਕਨਿ ਕੋਕਿਲਾ ਤਰਲ ਜੁਆਣੀ ॥ ਤਰਲਾ ਜੁਆਣੀ ਆਪਿ ਭਾਣੀ ਇਛ ਮਨ ਕੀ ਪੂਰੀਏ ॥ ਸਾਰੰਗ ਜਿਉ ਪਗੁ ਧਰੈ ਠਿਮਿ ਠਿਮਿ ਆਪਿ ਆਪੁ ਸੰਧੂਰਏ ॥ ਸ੍ਰੀਰੰਗ ਰਾਤੀ ਫਿਰੈ ਮਾਤੀ ਉਦਕੁ ਗੰਗਾ ਵਾਣੀ ॥ ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕੁ ਦਾਸੁ ਹਰਿ ਕਾ ਤੇਰੀ ਚਾਲ ਸੁਹਾਵੀ ਮਧੁਰਾੜੀ ਬਾਣੀ ॥੮॥੨॥
वडहंसु महला १ ॥ करहु दइआ तेरा नामु वखाणा ॥ सभ उपाईऐ आपि आपे सरब समाणा ॥ सरबे समाणा आपि तूहै उपाइ धंधै लाईआ ॥ इकि तुझ ही कीए राजे इकना भिख भवाईआ ॥ लोभु मोहु तुझु कीआ मीठा एतु भरमि भुलाणा ॥ सदा दइआ करहु अपणी तामि नामु वखाणा ॥१॥ नामु तेरा है साचा सदा मै मनि भाणा ॥ दूखु गइआ सुखु आइ समाणा ॥ गावनि सुरि नर सुघड़ सुजाणा ॥ सुरि नर सुघड़ सुजाण गावहि जो तेरै मनि भावहे ॥ माइआ मोहे चेतहि नाही अहिला जनमु गवावहे ॥ इकि मूड़ मुगध न चेतहि मूले जो आइआ तिसु जाणा ॥ नामु तेरा सदा साचा सोइ मै मनि भाणा ॥२॥ तेरा वखतु सुहावा अम्रितु तेरी बाणी ॥ सेवक सेवहि भाउ करि लागा साउ पराणी ॥ साउ प्राणी तिना लागा जिनी अम्रितु पाइआ ॥ नामि तेरै जोइ राते नित चड़हि सवाइआ ॥ इकु करमु धरमु न होइ संजमु जामि न एकु पछाणी ॥ वखतु सुहावा सदा तेरा अम्रित तेरी बाणी ॥३॥ हउ बलिहारी साचे नावै ॥ राजु तेरा कबहु न जावै ॥ राजो त तेरा सदा निहचलु एहु कबहु न जावए ॥ चाकरु त तेरा सोइ होवै जोइ सहजि समावए ॥ दुसमनु त दूखु न लगै मूले पापु नेड़ि न आवए ॥ हउ बलिहारी सदा होवा एक तेरे नावए ॥४॥ जुगह जुगंतरि भगत तुमारे ॥ कीरति करहि सुआमी तेरै दुआरे ॥ जपहि त साचा एकु मुरारे ॥ साचा मुरारे तामि जापहि जामि मंनि वसावहे ॥ भरमो भुलावा तुझहि कीआ जामि एहु चुकावहे ॥ गुर परसादी करहु किरपा लेहु जमहु उबारे ॥ जुगह जुगंतरि भगत तुमारे ॥५॥ वडे मेरे साहिबा अलख अपारा ॥ किउ करि करउ बेनंती हउ आखि न जाणा ॥ नदरि करहि ता साचु पछाणा ॥ साचो पछाणा तामि तेरा जामि आपि बुझावहे ॥ दूख भूख संसारि कीए सहसा एहु चुकावहे ॥ बिनवंति नानकु जाइ सहसा बुझै गुर बीचारा ॥ वडा साहिबु है आपि अलख अपारा ॥६॥ तेरे बंके लोइण दंत रीसाला ॥ सोहणे नक जिन लमड़े वाला ॥ कंचन काइआ सुइने की ढाला ॥ सोवंन ढाला क्रिसन माला जपहु तुसी सहेलीहो ॥ जम दुआरि न होहु खड़ीआ सिख सुणहु महेलीहो ॥ हंस हंसा बग बगा लहै मन की जाला ॥ बंके लोइण दंत रीसाला ॥७॥ तेरी चाल सुहावी मधुराड़ी बाणी ॥ कुहकनि कोकिला तरल जुआणी ॥ तरला जुआणी आपि भाणी इछ मन की पूरीए ॥ सारंग जिउ पगु धरै ठिमि ठिमि आपि आपु संधूरए ॥ स्रीरंग राती फिरै माती उदकु गंगा वाणी ॥ बिनवंति नानकु दासु हरि का तेरी चाल सुहावी मधुराड़ी बाणी ॥८॥२॥
अर्थ: हे प्रभू! मेहर कर कि मैं तेरा नाम सिमर सकूँ। तूने सारी सृष्टि खुद ही पैदा की है और खुद ही सब जीवों में व्यापक है। तू खुद ही सब जीवों में समाया हुआ है, पैदा करके तूने खुद ही सुष्टि को माया की दौड़-भाग में लगाया हुआ है। कई जीवों को तू स्वयं ही राजे बना देता है, और कई जीवों को (मंगते बना के) भिक्षा मांगने के वास्ते (दर-ब-दर) भटका रहा है। हे प्रभू! तूने लोभ और मोह को मीठा बना दिया है, जगत इस भटकना में पड़ के गलत रास्ते पर चल रहा है। अगर तू सदा अपनी मेहर करता रहे तो ही मैं तेरा नाम सिमर सकता हूँ।1। हे प्रभू! तेरा नाम सदा स्थिर रहने वाला है, तेरा नाम मेरे मन को प्यारा लगता है। जो मनुष्य तेरा नाम सिमरता है उसका दुख दूर हो जाता है और आत्मिक आनंद उसके अंदर आ बसता है। भाग्यशाली सदाचारी समझदार मनुष्य तेरी सिफत सालाह के गीत गाते हैं। हे प्रभू! जो बंदे तेरे मन को भाते हैं वे सुघड़ सुजान तेरी सिफत सालाह के गीत गाते हैं। पर, जो मनुष्य माया में मोहे जाते हैं वे तुझे नहीं सिमरते वे अपना अमूल्य जन्म गवा लेते हैं। अनेकों ऐसे मूर्ख मनुष्य हैं जो, हे प्रभू! तुझे याद नहीं करते (वे ये नहीं समझते कि) जो जगत में पैदा हुआ है उसने (आखिर यहाँ से) चले जाना है। हे प्रभू! तेरा सदा ही स्थिर रहने वाला है, तेरा नाम मेरे मन को प्यारा लग रहा है।2। हे प्रभू! तेरी सिफत सालाह की बाणी अमृत है (अटल आत्मिक जीवन देने वाली है) वह वक्त बहुत सुहावना लगता है जब तेरा नाम याद करते हैं। जिन बंदों को तेरे नाम का रस आता है वह सेवक प्रेम से तेरा नाम सिमरते हैं। उन ही लोगों को नाम का रस आता है जिनको ये नाम अमृत प्राप्त होता है। हे प्रभू! जो लोग तेरे नाम में जुड़ते हैं वह (आत्मिक जीवन की उन्नति में) सदा बढ़ते-फूलते रहते हैं। हे प्रभू! जब तक मैं तेरे साथ एक गहरी सांझ नहीं डालता तब तक और कोई एक भी धर्म-कर्म कोई एक भी संयम किसी अर्थ के नहीं। तेरी सिफत सालाह की बाणी आत्मिक जीवन-दाती है, वह वक्त बहुत सुहाना लगता है जब तेरा नाम सिमरते हैं।3। हे प्रभू! तेरे सदा-स्थिर रहने वाले नाम से कुर्बान जाता हूँ। तेरा राज कभी भी नाश होने वाला नहीं है। हे प्रभू! तेरा राज सदा अटॅल रहने वाला है, ये कभी भी नाश नहीं हो सकता। वही मनुष्य तेरा असल भक्त-सेवक है जो (तेरा नाम सिमर के) आत्मिक अडोलता में टिका रहता है। कोई वैरी कोई दुख उस पर हावी नहीं हो सकता, कोई पाप उसके नजदीक नहीं फटकता। हे प्रभू! मैं सदा तेरे नाम से बलिहार जाता हूँ।4। हे प्रभू! हरेक युग में ही तेरे भक्त मौजूद रहे हैं, जो, हे स्वामी! तेरे दर पर तेरी सिफत सालाह करते हैं, जो सदा तुझे ही सदा-स्थिर प्रभू को सिमरते हैं। हे प्रभू! तूझ सदा-स्थिर को वे तभी जप सकते हैं जब तू खुद उनके मन में अपना नाम बसाता है, जब तू उनके मन में से माया वाली भटकना दूर करता है जो तूने खुद ही पैदा की हुई है। हे प्रभू! गुरू की कृपा से तू अपने भक्तों पर मेहर करता है, और उनको जमों से बचा लेता है। हरेक युग में ही तेरे भक्त-सेवक मौजूद हैं।5। हे मेरे बड़े मालिक! हे अदृष्य मालिक! हे बेअंत मालिक! मैं (तेरे दर पर) कैसे विनती करूँ? मुझे तो विनती करनी भी नहीं आती। अगर तू खुद (मेरे पर) मेहर की निगाह करे तो ही मैं तेरे सदा-स्थिर नाम जल से सांझ डाल सकता हूँ। तेरा सदा-स्थिर नाम मैं तब ही पहचान सकता हूँ (तब ही इसकी कद्र पा सकता हूँ) जब तू स्वयं मुझे उसकी सूझ बख्शे, जब तू मेरे मन में से माया की तृष्णा और (इससे पैदा होने वाले) उन दुखों का सहम दूर करे जो कि जगत में तूने स्वयं ही पैदा किए हुए हैं। नानक विनती करता है कि जब मनुष्य गुरू के शबद की विचार समझता है तो (इसके अंदर से दुख आदि का) सहम दूर हो जाता है (और यकीन बन जाता है कि) अदृष्य और बेअंत प्रभू खुद (सब जीवों के सिर पर) बड़ा मालिक है।6। (हे सर्व-व्यापक सृजनहार! जगत की सारी सुंदरता तूने अपने स्वरूप से रची है। तूने ऐसे ऐसे स्त्री-पुरुष जिनके नैन-दाँत, नाक, केश आदि सारे ही अंग महान सुंदर हैं। उनमें, हे प्रभू! तू खुद ही बैठा जीवन ज्योति जगा रहा है। सो) हे प्रभू! तेरे नैन बांके हैं, तेरे दाँत सुंदर हैं, तेरा नाम सुंदर है, तेरे सुंदर लंबे केश हैं (जिनके सुंदर नाक हैं, जिनके सुंदर लंबे केश हैं; ये भी हे प्रभू! तेरे ही नाक व तेरे ही केश हैं)। हे प्रभू! तेरा शरीर सोने जैसा शुद्ध आरोग है और सुडोल है, मानो, सोने में ही ढला हुआ है। हे सहेलियो! (हे सत्संगी सज्जनों!) तुम उस परमात्मा (के नाम) की माला जपो (उस परमात्मा का नाम बार बार जपो) जिसका शरीर अरोग्य और सुडोल है, जैसे, सोने में ढला हुआ है।हे जीव-सि्त्रयो! मेरी शिक्षा सुनो! (अगर तुम भी उस आरोग्य और सुडोल स्वरूप वाले सर्व-व्यापक सृजनहार का नाम जपोगी, तो) तुम भी (अंत के समय) यम-राज के दरवाजे पर लाइन में खड़ी नहीं होवोगी। (जो लोग उस परमात्मा का नाम जपते हैं उनके) मन में से विकारों की मैल उतर जाती है। (सिमरन की बरकति से) महा-पाखण्डी बगुलों से श्रेष्ठ हंस बन जाते हैं (पाखण्डी लोगों से उच्च जीवन वाले गुरमुख बन जाते हैं)। हे सहेलियो! (उस सर्व-व्यापक प्रभू के) सुंदर नैन हैं, सुंदर दाँत हैं (इस दिखाई देते संसार की सारी ही सुंदरता का श्रोत प्रभू खुद ही है)।7। (कहीं मीठी वैराग भरी सुर में कोयलें कूक रही हैं, कहीं चंचल जवानी में मद्-मस्त सुंदरियां हैं जो मस्त हाथी की तरह बड़ी मटक से चलती हैं। हे प्रभू! ये कोयल की मीठी बोली और चंचल जवानी का मद सब कुछ तूने खुद ही पैदा किया है। सो, हे प्रभू!) तेरी (मस्त) चाल (मन को) सुख देने वाली है, तेरी बोली सोहानी और मधुर है। (तेरी ही पैदा की हुई) चंचल जवानी की मद् भरी सुंदरीयां हैं। ये चंचल जवानी प्रभू ने खुद ही पैदा की, उसे खुद को ही इसका पैदा करना अच्छा लगा, उसने अपने ही मन की इच्छा पूरी की। (चंचल जवानी से मद्-मस्त सुंदरियों में बैठ के प्रभू खुद ही) मस्त हाथी की तरह मटक-मटक के पैर धरता है, वह खुद ही अपने आप को (जवानी के मद् में) मस्त कर रहा है। (प्रभू की अपनी ही कृपा से कोई अति भाग्यशाली जीव-स्त्री उस) लक्ष्मी-पति के प्रेम रंग में रंगी हुई (उसके नाम में) मस्त फिरती है, (उसका जीवन पवित्र हो जाता है) जैसे गंगा का पानी (पवित्र माना जाता है)। हरी का दास नानक विनती करता है– हे प्रभू! तेरी चाल सुहानी है और तेरी बोली मीठी-मीठी है।8।2।
Wadahans, First Mehl: Show mercy to me, that I may chant Your Name. You Yourself created all, and You are pervading among all. You Yourself are pervading among all, and You link them to their tasks. Some, You have made kings, while others go about begging. You have made greed and emotional attachment seem sweet; they are deluded by this delusion. Be ever merciful to me; only then can I chant Your Name. ||1|| Your Name is True, and forever pleasing to my mind. My pain is dispelled, and I am permeated with peace. The angels, the mortal beings, the wise and the enlightened sing of You. The angels, the mortal beings, the wise and the enlightened sing of You; they are pleasing to Your Mind. Enticed by Maya, they do not remember; they waste away their lives in vain. Some fools and idiots never remember; whoever has come, shall have to go. Your Name is forever True, and pleasing to my mind. || 2 || Beauteous and blessed is Your time; the Bani of Your Word is Ambrosial Nectar. Your servants serve You with love; these mortals are attached to Your taste. Those mortals are attached to Your taste, who are blessed with the Ambrosial Name. Those who are attuned to Your Name prosper more and more, day by day. Some do not practice good deeds or live righteously; they do not practice self-discipline, and they do not realize the One. Forever blessed and beauteous is Your time; the Bani of Your Word is Ambrosial Nectar. || 3 || I am a sacrifice to the True Name. Your rule shall never end. Your rule is eternal and unchanging; it shall never come to an end. He alone becomes Your servant, who contemplates You in peaceful ease. Enemies and pain shall never touch him, and sin shall never come close to him. I am forever a sacrifice to the One Lord, and Your Name. || 4 || Throughout the ages, Your devotees sing Your Praises, O Lord Master, at Your Door. They meditate on the One True Lord. They meditate on the True Lord, when they enshrine Him in their minds. Doubt and delusion are Your making; when these are dispelled, then, by Guru’s Grace, You grant Your Grace, and save them from the noose of Death. Throughout the ages, they are Your devotees. || 5 || O my Great Lord and Master, You are unknowable and infinite. How should I make and offer my prayer? I do not know what to say. If You bless me with Your Glance of Grace, then I realize the Truth. I come to realize the Truth, when You Yourself instruct me. The pain and hunger of the world are Your making; please eradicate this skepticism. Prays Nanak, skepticism is taken away, when one understands the Guru’s wisdom. The Great Lord and Master is unknowable and infinite. || 6 || Your eyes are beautiful, and Your teeth are delightful. Your nose is graceful, and Your hair is so long. Your body is precious, cast in gold. His body is cast in gold, and He wears Krishna’s mala; meditate on Him, O sisters. You shall not have to stand at Death’s door, O sisters, if you listen to these teachings. From a crane, you shall be transformed into a swan, and the filth of your mind shall be removed. Your eyes are beautiful, and Your teeth are delightful. || 7 || Your walk is graceful, and Your speech is sweet. You coo like a songbird, and your youthful beauty is alluring. Your youthful beauty is so alluring; it pleases You and fulfills the mind’s desires. Like an elephant, You step with Your Feet so carefully; You are pleased with Yourself. She who is imbued with the Love of such a Great Lord, flows intoxicated, like the waters of the Ganges. Prays Nanak, I am Your slave, O Lord; Your walk is graceful, and Your speech is sweet. || 8 || 2 ||
ਅਰਥ: ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਮੇਹਰ ਕਰ ਕਿ ਮੈਂ ਤੇਰਾ ਨਾਮ ਸਿਮਰ ਸਕਾਂ। ਤੂੰ ਸਾਰੀ ਸ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਆਪ ਹੀ ਪੈਦਾ ਕੀਤੀ ਹੈ ਤੇ ਆਪ ਹੀ ਸਭ ਜੀਵਾਂ ਵਿਚ ਵਿਆਪਕ ਹੈਂ। ਤੂੰ ਆਪ ਹੀ ਸਭ ਜੀਵਾਂ ਵਿਚ ਸਮਾਇਆ ਹੋਇਆ ਹੈਂ, ਪੈਦਾ ਕਰ ਕੇ ਤੂੰ ਆਪ ਹੀ ਸ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਨੂੰ ਮਾਇਆ ਦੀ ਦੌੜ-ਭੱਜ ਵਿਚ ਲਾਇਆ ਹੋਇਆ ਹੈ। ਕਈ ਜੀਵਾਂ ਨੂੰ ਤੂੰ ਆਪ ਹੀ ਰਾਜੇ ਬਣਾ ਦਿੱਤਾ ਹੈ, ਤੇ ਕਈ ਜੀਵਾਂ ਨੂੰ (ਮੰਗਤੇ ਬਣਾ ਕੇ) ਭਿੱਖਿਆ ਮੰਗਣ ਵਾਸਤੇ (ਦਰ ਦਰ) ਭਵਾ ਰਿਹਾ ਹੈਂ। ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਤੂੰ ਲੋਭ ਅਤੇ ਮੋਹ ਨੂੰ ਮਿੱਠਾ ਬਣਾ ਦਿੱਤਾ ਹੈ, ਜਗਤ ਇਸ ਭਟਕਣਾ ਵਿਚ ਪੈ ਕੇ ਕੁਰਾਹੇ ਪੈ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਜੇ ਤੂੰ ਸਦਾ ਆਪਣੀ ਮੇਹਰ ਕਰਦਾ ਰਹੇਂ ਤਾਂ ਹੀ ਮੈਂ ਤੇਰਾ ਨਾਮ ਸਿਮਰ ਸਕਦਾ ਹਾਂ ॥੧॥ ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਤੇਰਾ ਨਾਮ ਸਦਾ-ਥਿਰ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ ਹੈ, ਤੇਰਾ ਨਾਮ ਮੈਨੂੰ ਮਨ ਵਿਚ ਪਿਆਰਾ ਲੱਗਦਾ ਹੈ। ਜੇਹੜਾ ਮਨੁੱਖ ਤੇਰਾ ਨਾਮ ਸਿਮਰਦਾ ਹੈ ਉਸ ਦਾ ਦੁਖ ਦੂਰ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਤੇ ਆਤਮਕ ਆਨੰਦ ਉਸ ਦੇ ਅੰਦਰ ਆ ਵੱਸਦਾ ਹੈ। ਭਾਗਾਂ ਵਾਲੇ ਸੁਚੱਜੇ ਸਿਆਣੇ ਮਨੁੱਖ ਤੇਰੀ ਸਿਫ਼ਤਿ-ਸਾਲਾਹ ਦੇ ਗੀਤ ਗਾਂਦੇ ਹਨ। ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਜੇਹੜੇ ਬੰਦੇ ਤੇਰੇ ਮਨ ਵਿਚ ਪਿਆਰੇ ਲੱਗਦੇ ਹਨ ਉਹ ਭਾਗਾਂ ਵਾਲੇ ਸੁਚੱਜੇ ਸਿਆਣੇ ਤੇਰੀ ਸਿਫ਼ਤਿ-ਸਾਲਾਹ ਦੇ ਗੀਤ ਗਾਂਦੇ ਹਨ। ਪਰ ਜੋ ਮਨੁੱਖ ਮਾਇਆ ਵਿਚ ਮੋਹੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਉਹ ਤੈਨੂੰ ਨਹੀਂ ਸਿਮਰਦੇ ਉਹ ਆਪਣਾ ਅਮੋਲਕ ਜਨਮ ਗਵਾ ਲੈਂਦੇ ਹਨ। ਅਨੇਕਾਂ ਐਸੇ ਮੂਰਖ ਮਨੁੱਖ ਹਨ ਜੋ, ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਤੈਨੂੰ ਯਾਦ ਨਹੀਂ ਕਰਦੇ (ਉਹ ਇਹ ਨਹੀਂ ਸਮਝਦੇ ਕਿ) ਜੇਹੜਾ ਜਗਤ ਵਿਚ ਜੰਮਿਆ ਹੈ ਉਸ ਨੇ (ਆਖ਼ਰ ਇਥੋਂ) ਚਲੇ ਜਾਣਾ ਹੈ। ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਤੇਰਾ ਨਾਮ ਸਦਾ ਹੀ ਥਿਰ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ ਹੈ, ਤੇਰਾ ਨਾਮ ਮੇਰੇ ਮਨ ਵਿਚ ਪਿਆਰਾ ਲੱਗ ਰਿਹਾ ਹੈ।੨। ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਤੇਰੀ ਸਿਫ਼ਤਿ-ਸਾਲਾਹ ਦੀ ਬਾਣੀ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਹੈ (ਅਟੱਲ ਆਤਮਕ ਜੀਵਨ ਦੇਣ ਵਾਲੀ ਹੈ) ਉਹ ਵਕਤ ਬਹੁਤ ਸੁਹਾਵਣਾ ਲੱਗਦਾ ਹੈ ਜਦੋਂ ਤੇਰਾ ਨਾਮ ਚੇਤੇ ਕਰੀਦਾ ਹੈ। ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਬੰਦਿਆਂ ਨੂੰ ਤੇਰੇ ਨਾਮ ਦਾ ਰਸ ਆਉਂਦਾ ਹੈ ਉਹ ਸੇਵਕ ਪ੍ਰੇਮ ਨਾਲ ਤੇਰਾ ਨਾਮ ਸਿਮਰਦੇ ਹਨ। ਉਹਨਾਂ ਹੀ ਬੰਦਿਆਂ ਨੂੰ ਨਾਮ ਦਾ ਰਸ ਆਉਂਦਾ ਹੈ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਇਹ ਨਾਮ-ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਜੇਹੜੇ ਬੰਦੇ ਤੇਰੇ ਨਾਮ ਵਿਚ ਜੁੜਦੇ ਹਨ ਉਹ (ਆਤਮਕ ਜੀਵਨ ਦੀ ਉੱਨਤੀ ਵਿਚ) ਸਦਾ ਵਧਦੇ ਫੁੱਲਦੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ। ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਜਦੋਂ ਤਕ ਮੈਂ ਇਕ ਤੇਰੇ ਨਾਲ ਡੂੰਘੀ ਸਾਂਝ ਨਹੀਂ ਪਾਂਦਾ ਤਦੋਂ ਤਕ ਹੋਰ ਕੋਈ ਇੱਕ ਭੀ ਧਰਮ-ਕਰਮ ਕੋਈ ਇੱਕ ਭੀ ਸੰਜਮ ਕਿਸੇ ਅਰਥ ਨਹੀਂ। ਤੇਰੀ ਸਿਫ਼ਤਿ-ਸਾਲਾਹ ਦੀ ਬਾਣੀ ਆਤਮਕ ਜੀਵਨ-ਦਾਤੀ ਹੈ, ਉਹ ਵੇਲਾ ਬਹੁਤ ਸੁਹਾਵਣਾ ਲੱਗਦਾ ਹੈ ਜਦੋਂ ਤੇਰਾ ਨਾਮ ਸਿਮਰੀਦਾ ਹੈ।੩। ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਮੈਂ ਤੇਰੇ ਸਦਾ-ਥਿਰ ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ ਨਾਮ ਤੋਂ ਕੁਰਬਾਨ ਜਾਂਦਾ ਹਾਂ। ਤੇਰਾ ਰਾਜ ਕਦੇ ਭੀ ਨਾਸ ਹੋਣ ਵਾਲਾ ਨਹੀਂ ਹੈ। ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਤੇਰਾ ਰਾਜ ਸਦਾ ਅਟੱਲ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ ਹੈ, ਇਹ ਕਦੇ ਭੀ ਨਾਸ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦਾ। ਉਹੀ ਮਨੁੱਖ ਤੇਰਾ ਅਸਲ ਭਗਤ-ਸੇਵਕ ਹੈ ਜੋ (ਤੇਰਾ ਨਾਮ ਸਿਮਰ ਕੇ) ਆਤਮਕ ਅਡੋਲਤਾ ਵਿਚ ਟਿਕਿਆ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ। ਕੋਈ ਵੈਰੀ ਕੋਈ ਦੁੱਖ ਕਦੇ ਭੀ ਉਸ ਦਾ ਲਾਗੂ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦਾ, ਕੋਈ ਪਾਪ ਉਸ ਦੇ ਨੇੜੇ ਨਹੀਂ ਢੁਕਦਾ। ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਮੈਂ ਸਦਾ ਤੇਰੇ ਹੀ ਨਾਮ ਤੋਂ ਸਦਕੇ ਜਾਂਦਾ ਹਾਂ।੪। ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਹਰੇਕ ਜੁਗ ਵਿਚ ਹੀ ਤੇਰੇ ਭਗਤ ਮੌਜੂਦ ਰਹੇ ਹਨ, ਜੋ, ਹੇ ਸੁਆਮੀ! ਤੇਰੇ ਦਰ ਤੇ ਤੇਰੀ ਸਿਫ਼ਤਿ-ਸਾਲਾਹ ਕਰਦੇ ਹਨ, ਜੋ ਸਦਾ ਤੈਨੂੰ ਹੀ ਸਦਾ-ਥਿਰ ਪ੍ਰਭੂ ਨੂੰ ਸਿਮਰਦੇ ਹਨ। ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਤੈਨੂੰ ਸਦਾ-ਥਿਰ ਨੂੰ ਉਹ ਤਦੋਂ ਹੀ ਜਪ ਸਕਦੇ ਹਨ ਜਦੋਂ ਤੂੰ ਆਪ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਮਨ ਵਿਚ ਆਪਣਾ ਨਾਮ ਵਸਾਂਦਾ ਹੈਂ, ਜਦੋਂ ਤੂੰ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਮਨ ਵਿਚੋਂ ਮਾਇਆ ਵਾਲੀ ਭਟਕਣਾ ਦੂਰ ਕਰਦਾ ਹੈਂ ਜੋ ਤੂੰ ਆਪ ਹੀ ਪੈਦਾ ਕੀਤੀ ਹੋਈ ਹੈ। ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਗੁਰੂ ਦੀ ਕਿਰਪਾ ਦੀ ਰਾਹੀਂ ਤੂੰ ਆਪਣੇ ਭਗਤਾਂ ਉੱਤੇ ਮੇਹਰ ਕਰਦਾ ਹੈਂ, ਤੇ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਜਮਾਂ ਤੋਂ ਬਚਾ ਲੈਂਦਾ ਹੈਂ। ਹਰੇਕ ਜੁਗ ਵਿਚ ਹੀ ਤੇਰੇ ਭਗਤ-ਸੇਵਕ ਮੌਜੂਦ ਰਹੇ ਹਨ।੫। ਹੇ ਮੇਰੇ ਵੱਡੇ ਮਾਲਕ! ਹੇ ਅਦ੍ਰਿਸ਼ਟ ਮਾਲਕ! ਹੇ ਬੇਅੰਤ ਮਾਲਕ! ਮੈਂ (ਤੇਰੇ ਦਰ ਤੇ) ਕਿਵੇਂ ਬੇਨਤੀ ਕਰਾਂ? ਮੈਨੂੰ ਤਾਂ ਬੇਨਤੀ ਕਰਨੀ ਭੀ ਨਹੀਂ ਆਉਂਦੀ। ਜੇ ਤੂੰ ਆਪ (ਮੇਰੇ ਉਤੇ) ਮੇਹਰ ਦੀ ਨਿਗਾਹ ਕਰੇਂ ਤਾਂ ਹੀ ਮੈਂ ਤੇਰੇ ਸਦਾ-ਥਿਰ ਨਾਮ ਨਾਲ ਸਾਂਝ ਪਾ ਸਕਦਾ ਹਾਂ। ਤੇਰਾ ਸਦਾ-ਥਿਰ ਨਾਮ ਮੈਂ ਤਦੋਂ ਹੀ ਪਛਾਣ ਸਕਦਾ ਹਾਂ (ਤਦੋਂ ਹੀ ਇਸ ਦੀ ਕਦਰ ਪਾ ਸਕਦਾ ਹਾਂ) ਜਦੋਂ ਤੂੰ ਆਪ ਮੈਨੂੰ ਇਹ ਸੂਝ ਬਖ਼ਸ਼ੇਂ, ਜਦੋਂ ਤੂੰ ਮੇਰੇ ਮਨ ਵਿਚੋਂ ਮਾਇਆ ਦੀ ਤ੍ਰਿਸ਼ਨਾ ਅਤੇ (ਇਸ ਤੋਂ ਪੈਦਾ ਹੋਣ ਵਾਲੇ) ਉਹਨਾਂ ਦੁੱਖਾਂ ਦਾ ਸਹਿਮ ਦੂਰ ਕਰੇਂ ਜੇਹੜੇ ਕਿ ਜਗਤ ਵਿਚ ਤੂੰ ਆਪ ਹੀ ਪੈਦਾ ਕੀਤੇ ਹੋਏ ਹਨ। ਨਾਨਕ ਬੇਨਤੀ ਕਰਦਾ ਹੈ ਕਿ ਜਦੋਂ ਮਨੁੱਖ ਗੁਰੂ ਦੇ ਸ਼ਬਦ ਦੀ ਵਿਚਾਰ ਸਮਝਦਾ ਹੈ ਤਾਂ (ਇਸ ਦੇ ਅੰਦਰੋਂ ਦੁੱਖ ਆਦਿਕਾਂ ਦਾ) ਸਹਿਮ ਦੂਰ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ (ਅਤੇ ਯਕੀਨ ਬਣ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ) ਅਦ੍ਰਿਸ਼ਟ ਤੇ ਬੇਅੰਤ ਪ੍ਰਭੂ ਆਪ (ਸਭ ਜੀਵਾਂ ਦੇ ਸਿਰ ਉਤੇ) ਵੱਡਾ ਮਾਲਕ ਹੈ।੬। (ਹੇ ਸਰਬ-ਵਿਆਪਕ ਸਿਰਜਣਹਾਰ! ਜਗਤ ਦੀ ਸਾਰੀ ਸੁੰਦਰਤਾ ਤੂੰ ਹੀ ਆਪਣੇ ਸਰੂਪ ਤੋਂ ਰਚੀ ਹੈ। ਤੂੰ ਉਹ ਉਹ ਇਸਤ੍ਰੀ ਮਰਦ ਪੈਦਾ ਕੀਤੇ ਹਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਨੈਣ ਦੰਦ ਨੱਕ ਕੇਸ ਆਦਿਕ ਸਾਰੇ ਹੀ ਅੰਗ ਮਹਾਨ ਸੁੰਦਰ ਹਨ। ਉਹਨਾਂ ਵਿਚ, ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਤੂੰ ਆਪ ਹੀ ਬੈਠਾ ਜੀਵਨ-ਜੋਤਿ ਜਗਾ ਰਿਹਾ ਹੈਂ। ਸੋ) ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਤੇਰੇ ਨੈਣ ਬਾਂਕੇ ਹਨ, ਤੇਰੇ ਦੰਦ ਸੋਹਣੇ ਹਨ, ਤੇਰਾ ਨੱਕ ਸੋਹਣਾ ਹੈ, ਤੇਰੇ ਸੋਹਣੇ ਲੰਮੇ ਕੇਸ ਹਨ (ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸੋਹਣੇ ਨੱਕ ਹਨ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸੋਹਣੇ ਲੰਮੇ ਕੇਸ ਹਨ; ਇਹ ਭੀ, ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਤੇਰੇ ਹੀ ਨੱਕ ਤੇਰੇ ਹੀ ਕੇਸ ਹਨ) । ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਤੇਰਾ ਸਰੀਰ ਸੋਨੇ ਵਰਗਾ ਸੁੱਧ ਅਰੋਗ ਹੈ ਤੇ ਸੁਡੌਲ ਹੈ, ਮਾਨੋ, ਸੋਨੇ ਵਿਚ ਹੀ ਢਲਿਆ ਹੋਇਆ ਹੈ। ਹੇ ਸਹੇਲੀਹੋ! ਹੇ ਸਤਸੰਗੀ ਸੱਜਣੋ! ਤੁਸੀ ਉਸ ਪਰਮਾਤਮਾ (ਦੇ ਨਾਮ) ਦੀ ਮਾਲਾ ਜਪੋ (ਉਸ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਨਾਮ ਮੁੜ ਮੁੜ ਜਪੋ) ਜਿਸ ਦਾ ਸਰੀਰ ਅਰੋਗ ਤੇ ਸੁਡੌਲ ਹੈ, ਮਾਨੋ, ਸੋਨੇ ਵਿਚ ਢਲਿਆ ਹੋਇਆ ਹੈ। ਹੇ ਸਹੇਲੀਹੋ! ਹੇ ਸਤਸੰਗੀ ਸੱਜਣੋ! ਤੁਸੀ ਉਸ ਪਰਮਾਤਮਾ (ਦੇ ਨਾਮ) ਦੀ ਮਾਲਾ ਜਪੋ (ਉਸ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਨਾਮ ਮੁੜ ਮੁੜ ਜਪੋ) ਜਿਸ ਦਾ ਸਰੀਰ ਅਰੋਗ ਤੇ ਸੁਡੌਲ ਹੈ, ਮਾਨੋ, ਸੋਨੇ ਵਿਚ ਢਲਿਆ ਹੋਇਆ ਹੈ। ਹੇ ਜੀਵ-ਇਸਤ੍ਰੀਓ! ਮੇਰੀ ਸਿੱਖਿਆ ਸੁਣੋ। (ਜੇ ਤੁਸੀ ਉਸ ਅਰੋਗ ਤੇ ਸੁਡੌਲ ਸਰੂਪ ਵਾਲੇ ਸਰਬ-ਵਿਆਪਕ ਸਿਰਜਣਹਾਰ ਦਾ ਨਾਮ ਜਪੋ ਗੀਆਂ, ਤਾਂ) ਤੁਸੀ (ਅੰਤ ਵੇਲੇ) ਜਮ-ਰਾਜ ਦੇ ਦਰਵਾਜ਼ੇ ਤੇ ਖੜੀਆਂ ਨਹੀਂ ਹੋਵੋਗੀਆਂ। (ਜੇਹੜੇ ਬੰਦੇ ਉਸ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਨਾਮ ਜਪਦੇ ਹਨ ਉਹਨਾਂ ਦੇ) ਮਨ ਤੋਂ ਵਿਕਾਰਾਂ ਦੀ ਮੈਲ ਲਹਿ ਜਾਂਦੀ ਹੈ। (ਸਿਮਰਨ ਦੀ ਬਰਕਤਿ ਨਾਲ (ਮਹਾ ਪਾਖੰਡੀ ਬਗਲਿਆਂ ਤੋਂ ਸ੍ਰੇਸ਼ਟ ਹੰਸ ਬਣ ਜਾਂਦੇ ਹਨ (ਪਖੰਡੀ ਬੰਦਿਆਂ ਤੋਂ ਉੱਚੇ ਜੀਵਨ ਵਾਲੇ ਗੁਰਮੁਖ ਬਣ ਜਾਂਦੇ ਹਨ) । ਹੇ ਸਹੇਲੀਹੋ! ਉਸ ਸਰਬ-ਵਿਆਪਕ ਪ੍ਰਭੂ ਦੇ) ਸੋਹਣੇ ਨੈਣ ਹਨ, ਸੋਹਣੇ ਦੰਦ ਹਨ (ਇਸ ਦਿੱਸਦੇ ਸੰਸਾਰ ਦੀ ਸਾਰੀ ਹੀ ਸੁੰਦਰਤਾ ਦਾ ਸੋਮਾ ਪ੍ਰਭੂ ਆਪ ਹੀ ਹੈ) ।੭। (ਕਿਤੇ ਮਿੱਠੀ ਵੈਰਾਗ-ਭਰੀ ਸੁਰ ਵਿਚ ਕੋਇਲਾਂ ਕੂਕ ਰਹੀਆਂ ਹਨ, ਕਿਤੇ ਚੰਚਲ ਜਵਾਨੀ ਦੇ ਮਦ-ਭਰੀਆਂ ਸੁੰਦਰੀਆਂ ਹਨ ਜੋ ਮਸਤ ਹਾਥੀ ਵਾਂਗ ਬੜੀ ਮਟਕ ਨਾਲ ਤੁਰਦੀਆਂ ਹਨ। ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਇਹ ਕੋਇਲ ਦੀ ਮਿੱਠੀ ਬੋਲੀ ਤੇ ਚੰਚਲ ਜਵਾਨੀ ਦਾ ਮਦ ਸਭ ਕੁਝ ਤੂੰ ਆਪ ਹੀ ਪੈਦਾ ਕੀਤਾ ਹੈ। ਸੋ ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ!) ਤੇਰੀ (ਮਸਤ) ਚਾਲ (ਮਨ ਨੂੰ) ਸੁਖ ਦੇਣ ਵਾਲੀ ਹੈ, ਤੇਰੀ ਬੋਲੀ ਸੋਹਣੀ ਮਿੱਠੀ ਮਿੱਠੀ ਹੈ। (ਤੇਰੀਆਂ ਹੀ ਪੈਦਾ ਕੀਤੀਆਂ) ਕੋਇਲਾਂ ਮਿੱਠੀ (ਵੈਰਾਗ-ਭਰੀ ਸੁਰ ਵਿਚ) ਕੂਕ ਰਹੀਆਂ ਹਨ, (ਤੇਰੀਆਂ ਹੀ ਪੈਦਾ ਕੀਤੀਆਂ) ਚੰਚਲ ਜਵਾਨੀ ਦੇ ਮਦ-ਭਰੀਆਂ ਸੁੰਦਰੀਆਂ ਹਨ। ਇਹ ਚੰਚਲ ਜੁਆਨੀ ਪ੍ਰਭੂ ਨੇ ਆਪ ਹੀ ਪੈਦਾ ਕੀਤੀ, ਉਸ ਨੂੰ ਆਪ ਨੂੰ ਹੀ ਇਸ ਦਾ ਪੈਦਾ ਕਰਨਾ ਚੰਗਾ ਲੱਗਾ, ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੇ ਹੀ ਮਨ ਦੀ ਇੱਛਾ ਪੂਰੀ ਕੀਤੀ। (ਚੰਚਲ ਜਵਾਨੀ ਦੇ ਮਦ-ਮੱਤੀ ਸੁੰਦਰੀ ਵਿਚ ਬੈਠ ਕੇ ਪ੍ਰਭੂ ਆਪ ਹੀ) ਮਸਤ ਹਾਥੀ ਵਾਂਗ ਬੜੀ ਮਟਕ ਨਾਲ ਪੈਰ ਧਰਦਾ ਹੈ, ਉਹ ਆਪ ਹੀ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ (ਜਵਾਨੀ ਦੇ ਮਦ ਵਿਚ) ਮਸਤ ਕਰ ਰਿਹਾ ਹੈ। (ਪ੍ਰਭੂ ਦੀ ਆਪਣੀ ਹੀ ਕਿਰਪਾ ਨਾਲ ਕੋਈ ਵਡ-ਭਾਗਣ ਜੀਵ-ਇਸਤ੍ਰੀ ਉਸ) ਲੱਛਮੀ-ਪਤੀ ਦੇ ਪ੍ਰੇਮ-ਰੰਗ ਵਿਚ ਰੰਗੀ ਹੋਈ (ਉਸ ਦੇ ਨਾਮ ਵਿਚ) ਮਸਤ ਫਿਰਦੀ ਹੈ, (ਉਸ ਦਾ ਜੀਵਨ ਪਵਿਤ੍ਰ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ) ਜਿਵੇਂ ਗੰਗਾ ਦਾ ਪਾਣੀ (ਪਵਿਤ੍ਰ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ) । ਹਰੀ ਦਾ ਦਾਸ ਨਾਨਕ ਬੇਨਤੀ ਕਰਦਾ ਹੈ-ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਤੇਰੀ ਚਾਲ ਸੁਹਾਵਣੀ ਹੈ ਤੇ ਤੇਰੀ ਬੋਲੀ ਮਿੱਠੀ ਮਿੱਠੀ ਹੈ।੮।੨।
अर्थ: हे प्रभु! कृपा कर की मैं तेरा नाम सुमिरन कर सकूँ । तूं सारी सृष्टि आप ही पैदा की है और आप ही सब जीवों में व्यापक है। तूं आप ही सब जीवों में समाया हुआ है, पैदा कर के तुने आप ही सारी सृष्टि की माया की दौड़-भाग में लगाया हुआ है। कई जीवों को तुने आप ही रजा बना दिया है, और कई जीवों को (भिखारी बना कर) भीख मांगने के लिए (दर दर) घुमा रहा है। हे प्रभु! तूंने लोभ और मोह को मीठा बना दिया है, जगत इस भटकन में आ कर कुराहे (बुरे राह) पर चल रहा है। अगर तूं सदा अपनी कृपा करता रहे तो ही में तेरा नाम सुमिरन कर सकता हूँ॥१॥
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ਵਾਹਿਗੁਰੂ ਜੀ ਕਾ ਖਾਲਸਾ !!
ਵਾਹਿਗੁਰੂ ਜੀ ਕੀ ਫਤਹਿ !!