रागु सोरठि बाणी भगत कबीर जी की घरु १ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ जब जरीऐ तब होइ भसम तनु रहै किरम दल खाई ॥ काची गागरि नीरु परतु है इआ तन की इहै बडाई ॥१॥ काहे भईआ फिरतौ फूलिआ फूलिआ ॥ जब दस मास उरध मुख रहता सो दिनु कैसे भूलिआ ॥१॥ रहाउ ॥ जिउ मधु माखी तिउ सठोरि रसु जोरि जोरि धनु कीआ ॥ मरती बार लेहु लेहु करीऐ भूतु रहन किउ दीआ ॥२॥ देहुरी लउ बरी नारि संगि भई आगै सजन सुहेला ॥ मरघट लउ सभु लोगु कुट्मबु भइओ आगै हंसु अकेला ॥३॥ कहतु कबीर सुनहु रे प्रानी परे काल ग्रस कूआ ॥ झूठी माइआ आपु बंधाइआ जिउ नलनी भ्रमि सूआ ॥४॥२॥
अर्थ: राग सोरठि, घर १ में भगत कबीर जी की बाणी। अकाल पुरख एक है और सतिगुरू की कृपा द्वारा मिलता है। (मरने के बाद) अगर शरीर (चित्ता में) जलाया जाए तो वह राख हो जाता है, अगर (कबर में) टिकाया जाए तो चींटियों का दल इस को खा जाता है। (जैसे) कच्चे घड़े में पानी डालने से (घड़ा गल कर पानी बाहर निकल जाता है उसी प्रकार स्वास ख़त्म हो जाने पर शरीर में से भी जिंद बाहर निकल जाती है, सो) इस शरीर का इतना सा ही मान है (जितना कच्चे घड़े का) ॥१॥ हे भाई! तूँ किस बात के अहंकार में भरा फिरता हैं ? तुझे वह समय क्यों भूल गया है जब तूँ (माँ के पेट में) दस महीने उल्टा टिका रहा था ॥१॥ रहाउ ॥ जैसे मक्खी (फूलों का) रस जोड़ जोड़ कर शहद इकट्ठा करती है, उसी प्रकार मुर्ख व्यक्ति उत्तसुक्ता कर कर के धन जोड़ता है (परन्तु आखिर वह बेगाना ही हो गया)। मौत आई, तो सब यही कहते हैं, ले चलो, ले चलो, अब यह बीत चूका है, बहुता समय घर रखने से कोई लाभ नहीं ॥२॥ घर की (बाहरी) दहलीज़ तक पत्नी (उस मुर्दे के) साथ जाती है, आगे सज्जन मित्र चुक लेते हैं, श्मशान तक परिवार के बन्दे और अन्य लोग जाते हैं, परन्तु परलोक में तो जीव-आतमा अकेली ही जाती है ॥३॥ कबीर जी कहते हैं-हे बन्दे! सुन, तूँ उस खूह में गिरा पड़ा हैं जिस को मौत ने घेरा हुआ है (भावर्थ, मौत अवश्य आती है। परन्तु, तूँ अपने आप को इस माया से बांध रखा है जिस से साथ नहीं निभना, जैसे तोता मौत के डर से अपने आप को नलनी से चंबोड रखता है (टिप्पणी: नलनी साथ चिंबड़ना तोते की फांसी का कारण बनता, माया के साथ चिंबड़े रहना मनुष्य की आतमिक मौत का कारण बनता है) ॥४॥२॥
Raag Sorath Baanee Bhagat Kabeer Jee Kee Ghar 1 Ik Oankaar Satgur Parsaad || Jab Jareeai Tab Hoe Bhasam Tan Rahai Kiram Dal Khaaee || Kaachee Gaagar Neer Parat Hai Eaa Tan Kee Ehai Baddaaee ||1|| Kaahe Bhaeeaa Firto Fooleaa Fooleaa || Jab Das Maas Ourdhh Mukh Rehtaa So Din Kaise Bhooleaa ||1|| Rahaau || Jiu Madhh Maakhee Tiu Sathor Ras Jor Jor Dhhan Keeaa || Martee Baar Lehu Lehu Kareeai Bhoot Rehan Kiu Deeaa ||2|| Dehuree Lau Baree Naar Sang Bhaee Aagai Sajan Suhelaa || Marghatt Lau Sabh Log Kuttanb Bhaeo Aagai Hans Akelaa ||3|| Kehat Kabeer Sunahu Re Praanee Pare Kaal Gras Kooaa || Jhoothee Maaeaa Aap Bandhhaaeaa Jiu Nalnee Bharam Sooaa ||4||2||
English Translation:- Meaning: Raag Sorath, The Word Of Devotee Kabeer Jee, First House: One Universal Creator God. By The Grace Of The True Guru: When the body is burnt, it turns to ashes; if it is not cremated, then it is eaten by armies of worms. The unbaked clay pitcher dissolves, when water is poured into it; this is also the nature of the body. ||1|| Why, O Siblings of Destiny, do you strut around, all puffed up with pride ? Have you forgotten those days, when you were hanging, face down, for ten months ? ||1|| Pause || Like the bee which collects honey, the fool eagerly gathers and collects wealth. At the time of death, they shout, “”Take him away, take him away! Why leave a ghost lying around ?””||2|| His wife accompanies him to the threshold, and his friends and companions beyond. All the people and relatives go as far as the cremation grounds, and then, the soul-swan goes on alone. ||3|| Says Kabeer Ji, listen, O mortal being: you have been seized by Death, and you have fallen into the deep, dark pit. You have entangled yourself in the false wealth of Maya, like the parrot caught in the trap. ||4||2||
A person with the vision of sharing Hukamnama Sahib straight from Shri Golden Temple, Amritsar. He is a Post-Graduate in Mechanical Engineering. Currently, he’s serving the society by running a youtube channel @helpinair.
He especially thanks those people who support him from time to time in this religious act.